3.2.11

स्वतंत्रता सेनानी श्री बारीन्द्रनाथ घोष

      श्री बरिन्द्र्नाथ घोष महान स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे तथा "युगांतर" के संस्थापकों में से एक थे  ! वह बारिन घोष नाम से भी लोकप्रिय हैं ! बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को फेलाने का श्री श्री बारीन्द्र और भूपेन्द्र नाथ दत्त ( विवेकानंद जी के छोटे भाई ) को ही जाता है ! महान अध्यात्मवादी श्री अरविन्द उनके बड़े भाई थे ! 

प्रारंभिक जीवन ->
     श्री बरिन्द्र्नाथ घोष का जन्म 5 -जनवरी-1880 को लन्दन के पास क्रोयदन(croydon) नमक कसबे में हुआ था ! उनके पिता श्री कृष्नाधन घोष एक नामी चिकित्सक व  प्रतिष्ठित जिला सर्जन थे जबकि उनकी माता देवी स्वर्णलता प्रसिद्ध समाज सुधारक व विद्वान राजनारायण बासु की पुत्री थीं ! श्री
अरविन्द , जो की पहले क्रन्तिकारी और फिर अध्यात्मवादी हो गए थे , उनके तीसरे बड़े भाई थे जबकि उनके दूसरे बड़े भाई श्री मनमोहन घोष अंग्रेजी साहित्य के विद्वान , कवि और कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज व ढाका यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर थे !
      बारिन घोष  की स्कूली शिक्षा देवगढ में हुई व 1901 में प्रवेश परीक्षा पास करके उन्होंने पटना कॉलेज में दाखिला लिया !बरोड़ा में उन्होंने मिलिट्री ट्रेनिंग ली ! इसी समय श्री अरविन्द से प्रभावित होकर उनका झुकाव क्रांतिकारी आन्दोलन की तरफ हुआ ! 

  क्रांतिकारी गतिविधियाँ ->
1902 में बारीन्द्र कलकत्ता वापस आये और जतिन्द्र्नाथ मुखर्जी (बाघ जतिन ) के साथ मिलकर बंगाल में अनेक क्रांतिकारी समूहों को संगठित करना शुरू कर दिया !
अनुशीलन समिति ->
 वारींद्र घोष और भूपेन्द्र नाथ दत्त के सहयोग से 1907 में कलकत्ता में अनुशीलन समिति का गठन किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य था -" खून के बदले खून !" 1905 के बंगाल विभाजन ने युवाओं को आंदोलित कर दिया था , जो की अनुशीलन समिति की स्थापना के पीछे एक प्रमुख वजह थी !
   इस समिति का जन्म 1903 में ही एक व्यायामशाला के रूप में हो गया था और इसकी स्थापना में "प्रमथ नाथ मित्र " और " सतीश चन्द्र बोस " का प्रमुख योगदान था ! एम्.एन. राय के सुझाव पर इसका नाम "अनुशीलन समिति " रखा गया ! प्रमथ नाथ मित्र इसके अध्यक्ष , चितरंजन दास व अरविन्द घोष इसके उपाध्यक्ष और सुरेन्द्रनाथ ठाकुर इसके कोषाध्यक्ष थे ! इसकी कार्यकारिणी की एकमात्र शिष्य सिस्टर निवेदिता थीं ! 1906 में इसका पहला सम्मलेन कलकत्ता में सुबोध मालिक के घर पर हुआ ! वारींद्र घोष जैसे लोगों का मानना था की सिर्फ राजनीतिक प्रचार ही काफी नहीं है और नोजवानों को अध्यात्मिक शिक्षा भी दी जनि चाहिए ! उन्होंने अनेक जोशीले नोजवानों को तैयार किया जो लोगों को बताते थे की स्वतंत्रता के लिए लड़ना पावन कर्तव्य है !

ढाका अनुशीलन समिति ->
कार्य की सहूलियत के लिए अनुशीलन समिति का दूसरा कार्यालय 1904 में ढाका में खोला गया ! जिसका नेतृत्व पुल्लिन बिहारी दास और पी. मित्रा ने किया ! ढाका में इसकी लगभग 500 शाखाएं थीं ! इसके अधिकांश सदस्य स्कूल और कॉलेज के छात्र थे ! सदस्यों को लाठी , तलवार और बन्दूक चलने ली ट्रेनिंग दी जाती थी ,हालाँकि बंदूकें आसानी से उपलब्ध नहीं होती थीं !
 वारींद्र घोष ने 1905 में क्रांति से सम्बंधित "भवानी मंदिर " नामक पहली किताब लिखी ! इसमें "आनंद मठ " का भाव था और क्रांतिकारियों को सन्देश दिया गया था की वह स्वाधीनता पाने तक सन्यासी का जीवन बिताएं !
युगांतर ->
    अपने उद्देश्यों की पूर्ती हेतु 1906 में उन्होंने भूपेन्द्र नाथ दत्त के साथ मिलकर " युगांतर" नमक साप्ताहिक पत्र बांगला भाषा में प्रकाशित करना शुरू किया  और क्रांति के प्रचार में इस पत्र का सर्वाधिक योगदान रहा ! इस पत्र ने लोगों में राजनीतिक व धार्मिक शिक्षा का प्रसार किया !जल्द ही इस नाम से एक क्रांतिकारी संगठन भी बन गया ! युगांतर का जन्म " अनुशीलन समिति " से ही हुआ था और जल्दी ही इसने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू कर दीं ! बंगाल के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएं थीं ! वरिन्द्र घोष के नेतृत्व में युगांतर समूह  ने सर्वत्र क्रांति का बिगुल बजाया ! इसने बम बनाये और दुष्ट अंग्रेज अधिकारीयों की हत्या का प्रयास किया ! 

 वारींद्र ने दूसरी पुस्तक " वर्तमान रणनीति " जिसे अक्टूबर-1907 में अविनाश चन्द्र भट्टाचार्य ने प्रकाशित किया ! यह किताब बंगाल के क्रांतिकारियों की पाठ्य पुस्तक बन गयी , इसमें कहा गया था की भारत की आजादी के लिए फ़ोजी शिक्षा और युद्ध जरूरी है !
  बारिन और बाघ जतिन ने पूरे बंगाल से अनेक युवा क्रांतिकारियों को खड़ा करने में निर्णायक भूमिका अदा की ! क्रांतिकारियों ने कलकत्ता के मनिक्तुल्ला में " मनिक्तुल्ला समूह " बनाया !यह उनका एक गुप्त स्थान था जहाँ वे बम बनाते और हथियार इकठ्ठा करते थे !
 30 -अप्रैल-1908 को खुदीराम बोस और प्रफ्फुल चंकी ने किंग्स्फोर्ड की हत्या का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप पुलिस ने बहुत तेजी से क्रांतिकारियों की धर-पकड़ शुरू कर दी और दुर्भाग्य से 2 -मई-1908 को श्री बारिन घोष को भी उनके कई साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया ! उन पर " अलीपुर बम केस " चलाया गया और प्रारंभ में ही उन्हें म्रत्युदंड की सजा दे दी गयी परन्तु बाद में उसे आजीवन कारावास कर दिया गया ! उन्हें अंदमान की भयावह सेल्युलर जेल में भेज दिया गया जहाँ वह 1920 तक केद रहे ! 

रिहाई और  आगे की गतिविधि ->
 बारिन घोष  को 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद दी गयी आम क्षमा (general amnesty) में रिहा कर दिया गया जिसके बाद वह कलकत्ता आ गए और पत्रकारिता प्रारंभ कर दी ! किन्तु जल्द ही उन्होंने पत्रकारिता भी छोड़ दी और कलकत्ता में आश्रम बना लिया ! 1923 में वह पोंडिचेरी चले गए जहाँ उनके बड़े भाई श्री अरविन्द ने प्रसिद्ध " श्री औरोविंद आश्रम " बनाया था ! श्री अरविन्द ने उन्हें आध्यात्म और साधना के प्रति प्रेरित किया जबकि श्री ठाकुर अनुकुलचंद उनके गुरु थे ! इन्होने ही अपने अनुयायियों द्वारा बरीं की सकुशल रिहाई में मदद की थी ! 1929 में बारिन दोबारा कलकत्ता आये और पत्रकारिता शुरू कर दी ! 1933 में उन्होंने "The Dawn of India" नामक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र शुरू किया ! वह "the statesman " से जुड़े रहे और 1950  में वह बांगला दैनिक " दैनिक बसुमती " के संपादक हो गए ! 18 -अप्रैल-1959 को इस महान सेनानी का देहांत हो गया ! 
उन्होंने  अनेक पुस्तकों की भी रचना की , जैसे ->


  • द्वीपांतर  बंशी      (Dvipantarer Banshi )



  • पाथेर इंगित        (Pather Ingit )



  •  अमर आत्मकथा       (Amar aatmkatha)



  • अग्नियुग       (agnijug)



  • ऋषि राजनारायण       (Rishi rajnarayan)



  • The Tale of My Exile



  •  श्री अरविन्द  (Sri Aurobindo )


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