श्री राजीव जी का जीवन परिचय

      श्री राजीव जी भारत की ऐसी महान विभूति हैं जिनमें  देशभक्ति ,स्वदेश प्रेम-स्वदेशी से प्रेम , सच्चरित्रता , सदाचार ,दया , करूणा , ब्रम्हचर्य , आत्म-सम्मान व देश के सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी थी !  वह एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ ओजस्वी वक्ता भी थे और जब वह बोलते तो उनका लम्बे से लम्बा भाषण भी हजारों लोग मन्त्र-मुग्ध होकर सुनते थे ! वह आधुनिक भारत में स्वदेशी आन्दोलन के प्रमुख नायक थे ! उन्हें विज्ञान के साथ-साथ जीवन के सभी सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों का गहरा ज्ञान था ! माँ भारती की सेवा हेतु उन्होंने जीवन के सभी सुखों का परित्याग कर दिया और अंतत: अपने प्राणों की आहुति भी दे दी !
        
प्रारंभिक जीवन->
       उनका जन्म 30-नवम्बर-1967 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ जिले की अतरोली तहसील के नाह गाँव में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार में हुआ था ! उनके परिवार में पिताजी श्री राधेश्याम जी , माता देवी मिथिलेश जी तथा एक छोटी बहन लता जी और छोटे भाई प्रदीप जी हैं ! शुरू से वे भगतसिंह, उधमसिंह, और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों से प्रभावित रहे | बाद में जब उन्होंने गांधीजी को पढ़ा तो उनसे भी प्रभावित हुए |
                       उन्होंने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रामीण परिवेश में ,फिरोजाबाद में पूरी की ! इसके बाद उन्होंने इलाहबाद यूनिवर्सिटी से बी.टेक. और कानपुर यूनिवर्सिटी से एम्.टेक. किया ! उनका अधिकांश जीवन वर्धा (महाराष्ट्र ) में व्यतीत हुआ ! वैज्ञानिक बनने के बाद उन्होंने भारत के मिसाइल-मैन व पूर्व-राष्ट्रपति श्री ऐ.पी.जे .अब्दुल कलाम के साथ भी कार्य किया था ! छात्र जीवन के दोरान ही उनमें देश सेवा की भावना प्रबल होने लगी !
              उनकी पढाई के दोरान ही जब 1984 में भयावह "भोपाल गैस कांड " हुआ और जिस तरह जाजपुर में हेज फेलने पर श्री सुभाष चन्द्र बोस ने वहां जाकर पीड़ितों की सहायता की थी उसी तरह श्री राजीव जी ने भी भोपाल जाकर स्वयंसेवक के रूप में पीड़ितों की सहायता की ! जब उन्होंने हजारों मासूमों की मौत और हजारों लोगों की तकलीफ देखी तो इस ह्रदय विदारक द्रश्य को देख उनका ह्रदय करुणा से भर गया ! साथ ही इतने बड़े हादसे पर भी सरकार द्वारा यूनियन कार्बाइड कंपनी पर कोई उचित कार्यवाही न करने से उनके मन का आक्रोशित हो उठा और उन्होंने इस भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने का संकल्प ले लिया ! 
           पिछले 20 वर्षों से वह देश में स्वदेशी की अलख जगा रहे थे ! इस उद्देश्य के लिए उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण करते हुए उन्होंने लगभग 15000 व्याख्यान दिए ! इस दोरान वह लगभग 10,000 गाँव में गए ! अपनी यात्राओं के दोरान वह मात्र दो जोड़ी खादी वस्त्र लेकर चलते थे और उन्हें स्वयं ही धोते थे !होम्योपेथिक डॉक्टर होने के साथ-साथ वह आयुर्वेद के भी विद्वान थे ! प्रमुख इतिहासकार श्री प्रो. धर्मपाल जी उनके गुरु हैं !

  प्रमुख योगदान ->
         1991 में डंकल प्रस्तावों के खिलाफ घूम घूम कर जन जाग्रति की और रेलियाँ निकाली |
1991-92 में राजस्थान के अलवर जिले में केडिया कंपनी के शराब कारखानों को बंद करवाने में भूमिका निभाई |
         1995-96 में टिहरी बाँध के खिलाफ ऐतिहासिक मोर्चा और संघर्ष किया जहाँ भयंकर लाठीचार्ज में काफी चोटें आई | टिहरी पुलिस ने तो राजीव भाई को मारने की योजना भी बना ली थी|
         1987 में सेवाग्राम आश्रम, वर्धा में प्रसिद्ध गाँधीवादी, इतिहासकार श्री धर्मपाल जी के सानिध्य में अंग्रेजो के समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करके देश को जाग्रत करने का काम किया |
        उन्होंने भारतीयों के हजारों सालों की मानसिक, सामाजिक , आर्थिक व राजनीतिक गुलामी के कारण भारतीयों में व्याप्त आत्महीनता की भावना को दूर करने और उनमें दोबारा आत्म-गोरव जगाने के लिए , सनातन भारतीय संस्कृति को विदेशी दुष्प्रभाव व देश को विदेशी कंपनियों की लूट से बचाने के लिए "स्वदेशी बचाओ आन्दोलन" को प्रारंभ किया ! साथ ही उन्होंने देश में स्वदेशी जनरल स्टोरों की श्रंखला खोलने पर भी जोर दिया जहाँ केवल भारतीय वस्तुओं की ही बिक्री की जाएगी !  देश में सबसे पहली स्वदेशी-विदेशी सूची की सूची तैयार करके स्वदेशी अपनाने का आग्रह प्रस्तुत किया|
            वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने जनता को स्विस बैंकों में जमा भारतीय काले धन के बारे में बताया और उसे वापस लाने का मार्ग भी बताया ! उन्होंने पेप्सी, कोका-कोला,  कोलगेट-पामोलिव, आई.टी.सी. , हिंदुस्तान लीवर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पोल खोली ! इनके खिलाफ उन्होंने  हाई-कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में केस भी लड़े और  इस लड़ाई में उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी !
        स्विस बैंक में जमा काले-धन को वापस लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के लिए उन्होंने 40,00,000 लोगों के हस्ताक्षर भी एकत्रित किये !

व्याख्यान->
            पिछले 10 वर्षों से परमपूज्य स्वामी रामदेवजी के संपर्क में रहने के बाद 9 जनवरी 2009 को परमपूज्य स्वामीजी के नेतृत्व में भारत स्वाभिमान आन्दोलन का जिम्मा अपने कन्धों पर ले लिया और उसके राष्ट्रिय प्रवक्ता व सचिव के रूप में नव-भारत के निर्माण का प्रयास करते रहे ! अपने व्याख्यानों द्वारा उन्होंने लाखों-करोड़ों भारतीयों को बताया की भारतीय संस्कृति कितनी महान है और उनमें आत्म-गौरव व राष्ट्र गौरव का भाव जगाया ! उन्होंने ब्रिटिश अभिलेखागारों के दस्तावेजों और अपनी रिसर्च के आधार पर अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों और आंकड़ों को संगृहीत किया और उनके आधार पर बताया की भारतीय हजारों सालों से धन-सम्पदा , ज्ञान-विज्ञान , धर्म-अध्यात्म में सबसे आगे थे ! दुनिया में सबसे पहले हमने कपडा बनाया और दुनिया को पहनाया ,  हमारी चिकित्सा पद्धति - "आयुर्वेद" , कितनी उन्नत थीं ! अंग्रेजों ने हमसे सर्जरी सीखी , हमारी शिक्षा व्यवस्था और कृषि व्यवस्था दुनिया में अतुलनीय थीं इसीलिए अंग्रेजों ने सर्वप्रथम उन्हें नष्ट किया ! यह तो अब सभी जान गए हैं की भारत ने ही दुनिया को शून्य और दशमलव पद्धति सिखाई ! इतनी महान संस्कृति के वाहक आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में खुद को हीन और पिछड़ा समझने लगे हैं और दूसरों को आधुनिक ! इसी आत्महीनता के भाव को वह दूर करना चाहते थे ! 
             उन्होंने ही बताया की 15-अगस्त-1947 को मिली आजादी किस तरह अधूरी थी ! हमने राजनीतिक रूप से तो स्वतंत्रता पा ली लेकिन मानसिक रूप से आज भी हम गुलाम ही हैं ! हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी नहीं बन पाई , हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अंग्रेजी में गर्व से भाषण देते हैं , हमारी संसद और न्यायपालिका का सारा काम अंग्रेजी में होता है , जो कानून अंग्रेजों ने भारतीयों के दमन के लिए बनाये थे आज भी वही नियम-कानून ही लागू हैं , बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश को लूट रहीं हैं और सरकार उन्हें पूर्ण सहयोग कर रही हैं , ऐसे में सच्ची स्वतंत्रता कहाँ आई है ? 
         उन्होंने ही बताया की हमारे द्वारा खून पसीने की कमी से दिए गए टेक्सों का 80 % हिस्सा तो नेताओं और नौकरशाही के ऊपर ही खर्च हो जाता है और केवल 20 % हिस्सा ही विकास कार्यों में लगता है ! यही व्यवस्था अंग्रेज राज के दोरान थी जो अभी तक चल रही है !

म्रत्यु ->
          अपने छतीसगढ़ दौरे के दोरान 30-नवम्बर-2010 को जब वह भिलाई में थे तभी काल के क्रूर पंजों ने अचानक ही उन्हें हमसे छीन लिया ! नियति का यह कितना दुखद खेल था की उनके जन्मदिवस (30-नवम्बर) को ही उनकी म्रत्यु हो गयी ! इसे म्रत्यु न कहकर यदि हत्या ही कहा जाये तो अधिक उचित होगा क्योंकि उन जैसा सदाचारी व आयुर्वेद और होम्योपेथी का ज्ञाता भला हार्ट अटक का शिकार कैसे हो सकता है ? इसके बजाय यह हो सकता है की , जिस तरह उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों और भ्रष्ट तंत्र की नींद हराम कर रखी थी , उनमें से ही किसी ने उनकी हत्या करा दी हो ! जिस देश में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे राष्ट्र नेता और श्री लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रधानमंत्री की हत्या आज तक रहस्य बनी हुई है उस देश में सच्चे देश प्रेमियों के साथ कुछ भी हो सकता है ! 

अंतिम विदाई ->
                 30-नवम्बर-2010 को भिलाई में उनकी म्रत्यु (हत्या) की खबर ने सभी को हतप्रभ कर दिया ! किसी को भी विश्वास नहीं हुआ की अब सच्चे ,सरल , विद्वान देशभक्त और हमारे प्रिय श्री "राजीव भाई" जी अब हमारे बीच नहीं रहे हैं ! रात को ही बालकृष्ण जी ने विशेष विमान से उनकी देह को भिलाई से हरिद्वार लाने का प्रबंध किया ! शाम को चार बजे जैसे ही उनका शव देहरादून के जोली ग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंचा और एम्बुलेंस में बाहर लाया गया तो सेकड़ों कार्यकर्ताओं ने वहां को रोक कर ताबूत पर फूल चढ़ा कर अपनी श्रधांजलि दी और वैदिक मन्त्रों का पाठ किया ! लगभग 6 बजे उनकी देह को पतंजलि योगपीठ में लाया गया जहाँ रामदेव जी और बालकिशन जी ने उन्हें बर्फ पर लिटाया और भारत स्वाभिमान के ध्वज में उन्हें लपेट दिया ! उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शनों के लिए रख दिया गया ! देश के अलग-अलग भागों से अनेकों कार्यकर्त्ता और उनके प्रशंसक  उनके अंतिम दर्शनों को दौड़ पड़े !  
             कैसी विडम्बना थी की जिन पूज्य माता-पिता ने उन्हें जन्म दिया उन्हें ही यह दुखद समाचार पता नहीं था ! जब वह गाजियाबाद से हरिद्वार पहुंचे तब उन्हें बताया गया की अब वह अपने सुपुत्र को कभी जीवित न देख पाएंगे ! यह सुनते ही उनके माता-पिता बिलख उठे !
          अगले दिन प्रात: उनकी पावन देह को हल्दी ,चन्दन और गंगाजल से नहलाकर अर्थी पर लिटाया गया और कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर आश्रम लाया गया ! वहां सभी कार्यकर्ताओं ने उनके अंतिम दर्शन किये ! उनकी अर्थी के साथ-साथ हजारों लोगों की भीड़ भी पीछे-पीछे चल पड़ी ! कनखल के सती घाट पर वैदिक क्रियाकर्म किया गया और देखते ही देखते उनका पावन शरीर अग्नि में विलीन हो गया !
         शमशान घाट में एक शोक सभा आयोजित की गयी जहाँ सभी कार्यकर्ताओं ने उनके सपनों को पूरा करने का व्रत लिया ! स्वामी जी ने नव-निर्मित भारत स्वाभिमान कार्यालय का नाम "राजीव भवन " रखने और 30-नवम्बर को "स्वदेशी दिवस " के रूप में मानाने की घोषणा की !
      माँ भारती का यह अदभुत सपूत लाखों करोड़ों दिलों में सदा जीवित रहेगा और देशप्रेम की राह दिखता रहेगा !