16.4.11

समाजवादी नायक : श्री राम मनोहर लोहिया


               जेनेवा में लीग ऑफ़ नेशंस  की सभा चल रही थी ! जैसे ही उसमें बीकानेर के महाराजा , जो कि अंग्रेजों का समर्थक था , भारत के प्रतिनिधि के रूप में बोलने के लिए खड़े हुए तभी एक भारतीय युवक ने दर्शक दीर्घा में खड़े होकर उनका विरोध किया ! इस युवक के अनुसार उस व्यक्ति को भारत का प्रतिनिधित्व करने का वास्तव में कोई हक़ नहीं था जो कि भारत की जनता का हितेषी न होकर ब्रिटिश राज का मित्र हो ! यह प्रखर युवक कोई और नहीं  श्री राम मनोहर लोहिया जी थे !  इस घटना ने उन्हें पूरे भारत में रातों-रात प्रसिद्ध कर दिया !

         श्री राम मनोहर लोहिया जी भारत के प्रमुख समाजवादी विचारक , राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी हैं ! राष्ट्रसेवा के लिए वह स्वतंत्रता से पूर्व और पश्चात् भी अनेकों बार जेल गए ! संसद में सरकार के अपव्यय पर कि गयी उनकी  बहस " तीन आना-पंद्रह आना " आज भी प्रसिद्ध है ! उनका जीवन प्रत्येक राजनीतिज्ञ के लिए आदर्श है किन्तु दुःख कि बात है कि आज उन जैसा एक भी राजनीतिज्ञ नहीं है !

जीवन परिचय :  

  लोहिया जी का जन्म 23 -मार्च-1910  को  उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गाँव  में एक राष्ट्रवादी परिवार में हुआ था ! उनके पिता श्री हीरा लाल जी गाँधी जी के उत्कट अनुयायी थे व माता चंदा जी शिक्षिका थीं !  अल्पायु में ही उनके सिर से माता का आँचल उठ गया ! उनके पिता स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे और सभा-सम्मेलनों में  बालक राम मनोहर को भी साथ ले जाते ! इस प्रकार लोहिया जी  को राष्ट्रप्रेम का गुण विरासत में ही मिला था !


             राम मनोहर जी का राजनीती से  सम्बन्ध बचपन में ही जुड़ गया था ! सर्वप्रथम 1920  में लोकमान्य श्री बाल गंगाधर तिलक जी की म्रत्यु पर उन्होंने एक हड़ताल का आयोजन किया ! जब वह पहली बार अपने पिताजी के साथ गाँधी जी से मिलने गए तब गाँधी जी के व्यक्तित्व का उनके मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हीं से प्रभावित होकर लोहिया जी ने मात्र 10 वर्ष की आयु में गांधीजी के सत्याग्रह मार्च में भाग लिया ! आगे चलकर उन्होंने गाँधी जी के ही नमक सत्याग्रह पर जर्मनी में अपनी पी. एच डी . की थीसिस की !


         पढाई में कुशाग्र लोहिया जी ने 1925 में फर्स्ट क्लास में मेट्रिक परीक्षा पास की और 1929 में कलकत्ता विश्व विद्यालय से अंग्रेजी साहित्य  में बी.ऐ. ओनर्स की परीक्षा पास की !


        पढाई के साथ-साथ वह राष्ट्रिय आन्दोलन से भी जुड़े रहे  ! 1928  में जब भारत में जगह-जगह सायमन आयोग का विरोध हो रहा था तब लोहिया जी ने भी छात्रों के साथ मिलकर उसका विरोध किया था !

      राष्ट्रप्रेम की खातिर ही उन्होंने ब्रिटेन के विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की बजाय जर्मनी की बर्लिन यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया ! इसके लिए उन्होंने जल्द ही जर्मन भाषा सीख ली और उनके उत्कृष्ट अकादमिक प्रदर्शन के आधार पर उन्हें जर्मनी जाने के लिए आर्थिक सहयोग भी मिल गया ! उन्होंने गाँधी जी के नमक सत्याग्रह पर अपनी पी. एच डी. की थीसिस की और अर्थशास्त्र व राजनीती विज्ञानं में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की !

        वहीँ उन्होंने  " असोसिएशन ऑफ़ यूरोपियन इंडियंस " नामक संगठन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वह उसके सेक्रेटरी भी चुने गए ! इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य था भारतीय राष्ट्रीयता की भावना का भारत के बाहर प्रसार करना !


         1932 में  स्वदेश वापस आते ही वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हो गए ! प्रारंभ से ही लोहिया जी का झुकाव समाजवाद की ओर था ! कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्यों के ढीलेपन से असंतुष्ट होकर लोहिया जी,  जे.पी.नारायण , अच्युत पटवर्धन, युसूफ मेहराली जैसे समाजवादी युवा कांग्रेसियों ने 1934  में " कांग्रेस समाजवादी पार्टी " की स्थापना की और लोहिया जी ने " कांग्रेस सोशलिस्ट " नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन भी किया !

         1936 में जब वह सर्वप्रथम " ऑल इण्डिया कांग्रेस कमेटी " के सदस्य चुने गए और उसके  प्रथम सचिव नियुक्त किये गए तब उन्होंने ही सबसे पहले विदेश विभाग की स्थापना की ! दो वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने भारतीय विदेश नीति के निरूपण में प्रमुख योगदान दिया !

          उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर युवाओं को स्वाधीनता आन्दोलन से जोड़ा पर इसके बदले में उन्हें जेल जाना पड़ा !


        1939 में  द्वितीय विश्व-युद्ध के प्रारंभ होने पर अंग्रेज सरकार द्वारा भारत को जबरदस्ती उसमें शामिल करने पर लोहिया जी ने इसका विरोध किया और अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा भारतीयों से अपील की की वह सभी सरकारी संस्थानों का बहिष्कार करें ! इस पर उन्हें मई-1939 को गिरफ्तार कर लिया गया किन्तु युवाओं के तीव्र विरोध के कारण  उन्हें अगले ही दिन छोड़ देना पड़ा !

        जेल से छूटते ही उन्होंने 1-जून-1940  को "हरिजन" में एक लेख लिखा जिसके प्रकाशित होते ही उन्हें  दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा मिली ! किन्तु उन्हें सजा देते वक्त मजिस्ट्रेट ने भी माना की " वह उच्च कोटि के विद्वान, सभ्य, सज्जन पुरुष हैं जिनकी विचारधारा उदार और नैतिक चरित्र उच्च है ! दिसंबर 1941 में सरकार को लोहिया जी सहित कांग्रेस के सभी नेताओं को छोड़ना पड़ा !

            1942 में भारत छोडो आन्दोलन के दोरान जब कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए तब बाकि बचे सदस्यों के साथ मिलकर लोहिया जी व अन्य ने आन्दोलन को जिन्दा रखा , अपनी गुप्त प्रिंटिंग प्रेस से करो या मरो के विषय पर अनेक लेख , पोस्टर, और पैम्फ्लिट छपे और वितरित किये ! साथ ही उन्होंने मुंबई के गुप्त कांग्रेस रेडियो से तीन महीनों तक ,जब तक पकडे नहीं गए , ऊषा महता के साथ संदेशों का प्रसारण किया ! अरुणा असफ अली के साथ उन्होंने कांग्रेस के मासिक पत्र "इन्कलाब " का संपादन किया !

         इसके बाद लोहिया जी स्वतंत्रता आन्दोलन को बल देने के लिए नाम बदल कर कलकत्ता पहुंचे !पुलिस से बचने के लिए उन्हें नेपाल के घने जंगलों में जाना पड़ा जहाँ उनकी भेंट कोइराला बंधुओं से हुई जो जीवन भर उनके मित्र रहे !

        मई-1944  को लोहिया जी को मुंबई में गिरफ्तार कर लाहोर की कुख्यात जेल में ले जाया गया !वहां उन्हें इतनी ज्यादा अमानवीय यातनाएं दी गयीं  की उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया ! इन अमानवीय यातनाओं के बाद भी लोहिया जी टूटे नहीं क्योंकि उनके पास नैतिक और आत्मबल था ! बाद में गांधीजी के दबाव डालने पर सरकार ने 1946 में लोहिया जी और उनके साथी जयप्रकाश नारायण को मुक्त किया !

        इस समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति लगभग निश्चित हो गयी थी किन्तु गोवा अभी भी पुर्तगालियों के कब्जे में था इसीलिए जेल से मुक्त होने के बाद लोहिया जी ने गोवा जाने का निश्चय किया ! वहां लोहिया जी को पता चला की पुर्तगाली सरकार ने गोवा में आन्दोलन को दबाने के लिए भाषण और लोगों द्वारा एक जगह पर एकत्रित होने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है ! इस पर लोहिया जी ने स्वयं भाषण देने का निर्णय लिया किन्तु उनके सभा स्थल पर पहुँचने से पूर्व ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ! लेकिन इस घटना का इतना व्यापक प्रचार हुआ की पुर्तगाली सरकार को यह प्रतिबन्ध हटाने के लिए विवश होना पड़ा ! गोवावासियों ने लोहिया जी के इस पुनीत कार्य को अपने लोक गीतों में समेट रखा है !

        जैसे जैसे स्वतंत्रता की घडी समीप आ रही थी वैसे-वैसे देश में हिन्दू-मुस्लिम दरार भी बढती जा रही थी !  लोहिया जी गाँधी जी के सच्चे अनुयायी व  भारत विभाजन के विरोधी थे ! उन्होंने स्वयं दंगा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों से अपील की की वह हिंसा को छोड़ एकता दिखाएं ! 15-अगस्त-1947 को जब दिल्ली  में भारत के बड़े-बड़े नेता सत्ता के हस्तांतरण समारोह  में शामिल थे तब लोहिया जी गांधीजी के साथ थे ! ३०-जनवरी-1948 को गांधीजी की हत्या और सांप्रदायिक दंगों की स्थिति में कांग्रेसी नेताओं की भूमिका से असंतुष्ट होकर कांग्रेस समाजवादी पार्टी ने किसानों, मजदूरों और कामगारों  को एकजुट करने का फेसला किया और कांग्रेस से अलग हो गयी ! इसके बाद लोहिया जी ने पूरे देश में भ्रमण किया और नेहरु सरकार की कमियों की आलोचना की !
   
कगोदु आन्दोलन :

              कर्णाटक के शिमोगा जिले के कगोदु गाँव में सिर्फ एक जमींदार था और बाकि सभी गाँव वाले मात्र किराये के काश्तकार थे ! उनकी सामाजिक-आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय थी , वह जमींदार के सामने खड़े तक नहीं हो सकते थे , महिला-पुरुषों को घुटनों तक की धोती पहननी पड़ती थी , जमींदार के घर में बेगार करनी पड़ती थी ! ऐसे निराशाजनक वातावरण में स्वतंत्रता प्राप्ति ने एक नयी रोशनी पैदा की लेकिन दबे-कुचले किसानों में आई इस चेतना से जमींदार तिलमिला गया और उसने उन्हें जमीनों से बेदखल कर दिया ! 1951  में किसानों ने संगठित होकर किसान संगठन और कर्णाटक समाजवादी पार्टी ने जमींदार के शोषण के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया ! कितने दुर्भाग्य की बात है की स्वतंत्र भारत की सरकार ने जमींदार का पक्ष लिया ! सैंकड़ों किसानों ने सागर और शिमोगा की जेलों को भर दिया !

        1951  के मध्य में जब लोहिया जी को इस सब अन्याय का पता चला तो वह तुरंत कगोदु पहुँच गए और किसानों को साथ लेकर खेतों में सत्याग्रह शुरू किया और जुलूस निकाला !  इस सहयोग के एवज में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ! वह पूरी रात सागर थाने में बेठे रहे ! बाद में उन्हें बंगलोर लाकर गवर्नमेंट हॉउस में बंद रखा गया और जब हाई कोर्ट में अपील की गयी तब जाकर उन्हें रिहा किया गया !




         स्वतंत्रता मिलने से पूर्व जिन नेताओं पर देश का भाग्य बदलने का विश्वास था वही नेता स्वतंत्रता के बाद स्वयं बदल गए ! नेहरु लोहिया जी के अच्छे मित्र थे किन्तु मतभेद होने पर उन्होंने उनकी आलोचना भी की ! 1962  में उन्होंने तत्कालीन भारत के सबसे शक्तिशाली व्यक्तित्व  प्रधानमंत्री नेहरु के विरुद्ध उन्हीं के फूलपुर चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ा ! यद्यपि वह हार गए किन्तु 1963  के उप-चुनाव में वह फर्रुकाबाद क्षेत्र से चुनाव लड़े और विजयी हुए ! 

       1963  में जब लोहिया जी संसद में पहुंचे तब तक देश में लगातार तीन आम चुनावों से कांग्रेस की ही सरकार थी ! इस स्थिति में आवाज उठाने वाले लोहिया जी पहले व्यक्ति थी ! उन्होंने सरकार के अनावश्यक व्यय पर एक पेम्फलेट लिखा " एक दिन के 25 ,000  रु. " ! असल में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु पर प्रति दिन 25 ,000 रु.  खर्च होते थे जबकि देश की 70 % जनता मात्र तीन आना प्रति दिन पर गुजर कर रही थी ! नेहरु ने इसका यह कहकर विरोध किया की भारत के योजना आयोग के आंकड़ों के अनुसार एक दिन की प्रति व्यक्ति आय लगभग 15  आना है ! लोहिया जी ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विशेष चर्चा की मांग की ! यह बहस आज भी " तीन आना-पंद्रह आना " नाम से प्रसिद्ध है ! बहस में कोई भी सदस्य उनके अकाट्य तर्कों के आगे टिक नहीं सका और उन्होंने साबित किया की योजना आयोग के आंकड़े काल्पनिक और गुमराह करने वाले हैं ! सच तो यह था की आज कि ही तरह केवल कुछ अमीर लोगों की आय ने प्रति व्यक्ति आय के औसत को बढ़ा दिया था   जिस से एक बिलकुल ही अविश्वसनीय चित्र बन गया था ! लोहिया जी के आंकड़े सही साबित हुए !

सच्चे समाजवादी :

             लोहिया जी हमेशा सादा जीवन जीने में विश्वास करते थे ! कोई भी निर्णय लेने से पहले वह यही सोचते थे कि क्या इससे दबे-पिछड़े लोगों के जीवन में कोई बदलाव आयेगा या नहीं !
            आज हम देखते हैं की खुद को समाजवादी कहने वाले नेता जिनके पास राजनीती में आने से पहले कुछ भी नहीं था आज वह  लाखों करोड़ों में खेल रहे हैं , अपने बच्चों के विवाह में लाखों-करोड़ों खर्च कर रहे हैं और भ्रष्टाचार में डूबे है ! उन्हें गरीब इंसानओं की भुखमरी, गरीबी, आंसू और तकलीफ नहीं दिखाई देती ! वहीँ एक समाजवादी लोहिया जी भी थे जिनका जीवन प्रत्येक समाजवादी के लिए अनुकरणीय है !  एक बार यात्रा के दौरान जब उन्होंने सूटकेस खोला तो देखा की उनकी सभी कमीजें फटी हुई हैं ! तब उन्हें बाजार से नयी कमीज खरीदनी पड़ी !
          जब वह शिमोगा जेल में थे तब बंदियों को पेटभर खाना भी न मिलने से वह अत्यधिक द्रवित हुए ! तब उनके पास जो मात्र 32  रु. थे वही उन्होंने उनके लिए भोजन लेने हेतु दे दिए !  
         इसी तरह एक बार वह अपने पार्टी के कुछ लोगों के साथ रेल के तीसरे दर्जे में सफ़र कर रहे थे ! उनके कुछ साथी पांव फेला कर बेठे थे जिससे अगली पंक्ति में बेठे किसानों को असुविधा हो रही थी ! इस पर लोहिया जी ने उन्हें समझाया " यह आचरण एक समाजवादी को शोभा नहीं देता ! "



लोहिया जी के विचार :

हिंदी :  वह हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में थे क्योंकि देश की अधिसंख्य जनता हिंदी समझती थी जबकि अंग्रेजी गुलामी का प्रतीक थी ! उन्हीं के शब्दों में ,
    " अंग्रेजी का प्रयोग मौलिक चिंतन को बाधित करता है , आत्महीनता कि भावना को पैदा करता है और शिक्षित व अशिक्षित के बीच खाई बनता है अत: आइये हम सब मिलकर हिंदी को उसका पुराना गौरव लोटायें !"
   " अंग्रेजों ने बन्दूक की गोली और अंग्रेजी की बोली से हम पर राज किया ! "

सामुदायिक सेवा : वह मानते थे कि मिलकर काम करने से समाज में एकता और जागरूकता आती है इसीलिए देश के पुनर्निर्माण में उन्होंने जनता के सहयोग को प्रोत्साहित किया ! लोगों को अपने क्षेत्रों में मिलजुलकर कुएं, नहरें और सड़कें बनाने को प्रेरित किया ! उनके चरित्र कि यह विशेषता थी कि जो बात वह दूसरों से कहते थे उसे पहले स्वयं करके दिखाते थे इसीलिए पनियारी नदी पर बाँध बनाने में उन्होंने खुद सहयोग किया और आज वह बाँध " लोहिया सागर बाँध " कहलाता है !

 
जाति : वह जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे ! उनके अनुसार भारत के विकास के मार्ग में जाति बाधक है न की वर्ग ! इतिहास में भारत की पराजयों का मुख्य कारण यही था की लोग स्वयं को एक राष्ट्र का नागरिक होने के बजाय एक जाति का सदस्य मानते रहे !  उनके शब्दों में " जाति अवसरों को रोकती है ! अवसर न मिलने से योग्यता कुंठित हो जाती है , यह कुंठित योग्यता फिर अवसरों को बाधित करती है !" उन्होंने अपनी पार्टी " संयुक्त समाजवादी पार्टी " में निम्न जाति के लोगों को प्रोत्साहन दिया ! उनके अनुसार जाति की दीवारों को तोड़ने का प्रमुख उपाय है उच्च और निम्न जातियों में भोजन और विवाह का सम्बन्ध बनना ! साथ ही निजी स्कूलों को बंद कर देना चाहिए और सरकारी स्कूलों को ही सुधारना चाहिए ताकि सभी जाति और वर्ग के बच्चे सामान शिक्षा प्राप्त कर सकें ! 

  सरकार : वह मानते थे की जिस सरकार से जनता संतुष्ट न हो उस अयोग्य सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं होता और जनता को ही उसे हटा देना चाहिए ! इसीलिए उन्होंने कहा था की " जिन्दा कौमें पांच वर्ष इंतज़ार नहीं करतीं !" वह स्वयं लगातार 16  वर्ष से शासन कर रही नेहरु सरकार के खिलाफ सर्वप्रथम अविश्वास प्रस्ताव लाये थे !
           उन्हें अक्सर विद्रोही समाजवादी कहा जाता है क्योंकि न तो वह अपने विचारों को प्रकट करने से पीछे हटते थे और न ही सत्य कहने से हिचकते थे !

        1962  में चीन हमले के बाद उन्होंने घोषणा की कि अपनी सुरक्षा के लिए भारत को भी बम बनाने चाहिए !

राजनीति :   उनके अनुसार भारत में कौन शासन करेगा इसका निर्धारण तीन बातों से होता है - उच्च जाती, धन और ज्ञान ! जिसके पास इनमें से कोई भी दो चीजें होती हैं वह शासन कर सकता है ! यह सूत्र आज भी उतना ही सत्य है !

          उन्होंने किसानों की दिन प्रति दिन की समस्याओं को ख़त्म करने के लिए हिंद किसान पंचायत की स्थापना की !

          वह चाहते थे की पूरी दुनिया के समाजवादी एक हो जाएँ ! उन्होंने विश्व में शांति की स्थापना के लिए विश्व सरकार की स्थापना की !

       जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने राजनीती के अलावा हजारों युवाओं से भारतीय साहित्य , राजनीती , कला जैसे विविध विषयों पर संवाद करना शुरू कर दिया !  

            12-अक्टूबर-1967  को दिल्ली में लोहिया जी का देहवासन हो गया ! इसे समाजवाद कि पराकाष्ठा ही कहा जायेगा कि वह अपने पीछे न कोई संपत्ति छोड़ गए न बैंक बैलेंस !


प्रमुख रचनायें :
  • Fragments of a World Mind  
  • Marx, Gandhi and Socialism
  • India, China, and Northern Frontiers
  • Foreign Policy
  • The Caste System
  • Interval During Politics
  • Guilty Men of India’s Partition
  • Fundamentals of a World Mind