13.3.11

भारत के सांसदों का वेतन

              आपने अपने देश के नेताओं से यह बात तो कई बार सुनी होगी की " हम तो जनता के सेवक हैं , हम तो जनसेवा करने के लिए राजनीती में आये हैं ,आदि " पर आपने कभी यह देखा है की सेवक की तनख्वाह मालिक  से ज्यादा हो ?  नहीं , तो अपने सांसदों को देख लीजिए , भारत में प्रति व्यक्ति आय 44 ,345 (जून,10)   है  जबकि वास्तविक आंकड़ों को देखा जाये तो देश में  84 करोड़ से ज्यादा लोग 20  रु. प्रति दिन पर गुजारा करने को मजबूर हैं वहीँ सांसदों का  वेतन  50,000 रु. प्रति माह है !         संसदीय समिति ने तो इनका वेतन 16,000 से सीधे 80,000 करने की सिफारिश की थी पर जगह वेतन बढाकर सिर्फ 50,000 ही किया गया , इसके अलावा उन्हें मिलने वाली अन्य सुविधाएं हैं ->

  1)  मंत्रिमंडल ने हर सांसद को दफ़्तर के लिए मिलने वाले ख़र्च को 20 हज़ार रुपए प्रति माह से बढ़ाकर 40 हज़ार रुपए कर दिया है,
 2) चुनाव क्षेत्र भत्ता भी बढ़ाया गया है और इसे 20 हज़ार रुपए प्रति महीने से बढ़ाकर 40 हज़ार रुपए कर दिया गया है,
 3) हर सांसद को मिलने वाले ब्याज मुक्त निजी कर्ज़ की राशि एक लाख रुपए से बढ़ाकर चार लाख रुपए कर दी गई है,
4) वाहन के इस्तेमाल के लिए जहाँ पहले प्रति किलोमीटर 13 रुपए मिलते थे, वहीं सांसद अब 16 रुपए प्रति किलोमीटर  पाते हैं,
5) हर सांसद का पति या पत्नी अब पहली श्रेणी में आ जा सकता है ,
6) केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सांसदों की पेंशन में भी वृद्धि की है और अब यह आठ हज़ार रुपए प्रति माह से बढ़कर 20 हज़ार रुपए प्रति महीना हो गयी है!

'संसद का अपमान'

सांसदों के वेतन में जो वृद्धि की गई है वह संसदीय समिति द्वारा प्रस्तावित 80,001 रुपए से कम है !इस पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना, अकाली दल के सांसदों ने मिलकर विरोध किया और संसद में नारे लगाए - "सांसदों का अपमान बंद करें." !  वे माँग कर रहे थे कि सरकार सांसदों का वेतन 80,000 करे !जब शोर-शराबा नहीं रुका तो स्पीकर मीरा कुमार ने सदन की  कार्यवाही स्थगित कर दी ! 
         कोई इन लालची और बेशर्म सांसदों से पूछे की जब यही सांसद संसद में काम ठप्प करके नारेबाजी करते हैं और जनता के खून पसीने के टैक्स की करोड़ों की कमाई को एक दिन में उड़ा देते हैं तब संसद का अपमान नहीं होता है !  
  पर गलती नेताओं की नहीं हमारी है जो इनकी बातों में आकर जाति , धर्म ,प्रांत ,भाषा के आधार पर आपस में लड़ते रहते हैं और यह पार्टियां जो वैसे देश हित के  हर मुद्दे पर लडती हैं वो सांसदों का वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर हमेशा एकमत ही होती हैं !
        कितने कमाल की बात है इन लोगों को ही यह हक़ है की ये अपना वेतन बढ़ाने का फैसला भी खुद ही कर लेते हैं ! काश देश के मजदूरों को भी अपनी मजदूरी तय करने का हक़ होता ,किसानों को अपनी फसल की कीमत तय करने का हक़ होता और भूखों को भर पेट खाने का हक़ होता !