राजीव दीक्षित जी के व्याख्यानों का लिखित रूप-(1) : भारत का स्वर्णिम अतीत

         आज भी अधिकांश लोगों के मन में यह बात बेठी हैं की भारत तो बहुत ही पिछड़ा ,गरीब और विदेशियों के शब्दों में 'सपेरों का देश' है !जैसे हम हजारों सालों से असभ्यता के अंधकार  में जी रहे थे और अब जाकर हमने सभ्यता के युग में कदम रखा है पर श्री राजीव जी  ने अपने व्याख्यान : 'भारत का स्वर्णिम अतीत' में भारत की हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता पर प्रकाश डालते हुए बताया है की हमने विश्व को पहली भाषा ,पहली संस्कृति और पहली सभ्यता दी और जब हम अतीत में  सभ्यता के शिखर पर थे तब विश्व के अन्य देश सभ्यता से कोसों दूर थे !
   वह भारत के गोरव्शाली अतीत का आंकलन प्रस्तुत प्रमाणों से करते हैं !  उनके अनुसार भारत पर विश्व के 200 से ज्यादा विशेषज्ञों ने शोध किया है ,उन्ही के आधार पर राजीव जी ने बताया की :
   थोमस बी. मेकाले भारत में 17 वर्ष रहा और पूरे भारत में घूमा !अंत में लन्दन वापस जाकर  उसने 2- फ़र.-1835 को  इंग्लैंड  की संसद के house of commons में लम्बा भाषण देते हुए कहा की " वो भारत में हर तरफ घूमा पर उसे वहाँ न कोई भिखारी मिला और न ही चोर.." (I have travelled length and breadth in India but I have never seen a begger and thief in India )        
          उसने आगे कहा की " मैंने भारत में इतनी धन-सम्पदा देखी है की हम इस देश को जीतने के बारे में नहीं सोच सकते! "  क्योंकि संपन्न और धनवान लोगों को गुलाम बनाना बहुत मुश्किल होता है!
      अंत में मेकाले ने कहा की "में जिस व्यक्ति के घर गया वहां सोने के सिक्कों का ऐसा ढेर लगा रहता है जैसे किसान के घर में चने और गेहूं का ! भारतवासी उन्हें गिन नहीं पाते इसीलिए वो उन्हें तौलकर देते  हैं !"
   इस बात से स्वत: ही अंदाजा लग जाता है की तब भी हम कितने संपन्न थे !

                                                            भारत का कपडा उद्योग
राजीव जी के अनुसार अमेरिका और यूरोप में सम्मानित ब्रिटिश लेखक  विलियम डिग्बी  ने 17वि सदी में  भारत पर एक बड़ी पुस्तक लिखी है जिसमें वह लिखता है की,
              " अंग्रेजों के पहले का भारत विश्व का सर्वसम्पन्न देश ही नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश भी था ! "
वह आगे लिखता है की "भारत के व्यापारी सबसे होशियार हैं ,भारत का कपडा और अन्य वस्तुएं पूरे विश्व में बिक रही हैं ! भारत के व्यापारी इनके बदले में सोने - चांदी की मांग करते हैं और अन्य देशों के व्यापारी उन्हें हाथों -हाथ दे देते हैं ! इससे भारत में सोना-चाँदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी ! जैसे भारत की नदियों का पानी बहकर महासागर में गिरता है वैसे ही विश्व का सोना-चाँदी बहकर भारत में गिरता है ,पर यह भारत से बाहर जाता नहीं  है क्योंकि ये मात्र निर्यात(export) करते हैं ,आयत(import) करते ही नहीं हैं ! यह हर चीज का उत्पादन करते हैं तो आयात की जरूरत ही नहीं पड़ती है ! "
     इसी तरह फ्रेंच  इतिहासकार फ्रांस्वा पैराड  ने 1711 में भारत पर एक बड़ा ग्रन्थ लिखा जिसमें वह लिखता है की ,
             " मेरी जानकारी में भारत में 36 तरह के ऐसे उद्योग हैं जिनमें बनी हर चीज विदेशों में निर्यात होती है ! भारत के सभी शिल्प और उद्योग उत्पादन में सर्वोत्कृष्ट ,कलापूर्ण  व् कीमत में सबसे सस्ते हैं ! मुझे  मिले प्रमाणों के अनुसार भारत का निर्यात दुनिया के बाजारों में पिछले 3000 सालों से बिना रुके चल रहा है !"
  एक स्कॉटिश इतिहासकार मार्टिन कहता है की,
                "जब इंग्लैंड के निवासी बर्बर और जंगली जीवन बिताते थे तब भारत में सबसे बेहतरीन कपडा बनता था और विश्व के बाजारों में बिकता था ! मुझे यह स्वीकार करने में कोई शर्म  नहीं की भारवासियों ने पूरी दुनिया को कपडा बनाना और पहनना  सिखाया  है ! " वह आगे कहता है की " रोमन साम्राज्य के सभी राजा-रानी भारत से कपडा मंगाते रहे और पहनते रहे हैं !"
    फ़्रांसिसी इतिहासकार त्रेवारनी  1750 में लिखता है की "भारत के वस्त्र इतने हलके और सुंदर   हैं की हाथ पर रखने पर उनका वजन पता ही नहीं चलता है ! "
   अंग्रेज विलियम वार्ड के अनुसार,
              "भारत का 13 गज लम्बा कपडा हम एक छोटी सी अंगूठी से खींचकर बाहर निकाल सकते हैं , 15 गज के कपडे के ठान का वजन 100 ग्रा . सेर भी कम होता है  और कुछ थानों का वजन तो 15 - 20  रत्ती तक होता है ! "   वह आगे कहता है की "भारत का मलमल बड़ा विलक्षण है की अगर इसे घास पर बिछा दो और उस पर ओस की बूँद गिर जाये तो तो दिखाई नहीं देती है क्योंकि जीतनी हलकी ओस की बूँद होती है उतना ही हल्का वह मलमल होता है ! " उसके अनुसार  " हम अंग्रेजों ने तो कपडा बनान सन 1780 के बाद शुरू किया जबकि भारत में तो 3000 सालों से कपडा बनता और  विश्व में बिकता रहा है !"
  इसी तरह एक अंग्रेज अधिकारी थोमस मुनरो भारत  की बनी शोल की प्रशंसा  करता है ! वह जब मद्रास में गवर्नर रहा तब किसी भारतीय राजा ने उसे एक शोल  भेंट की ,जब वह लन्दन वापस गया तब उसने 1813 में लन्दन की संसद में कहा की " में भारत से एक शोल  लाया जिसे 7 सालों से प्रयोग कार रहा हूँ फिर भी उसकी क्वालिटी  में कोई फर्क नहीं पड़ा है ! मैंने पूरे यूरोप में प्रवास किया है पर कोई भी देश ऐसी शोल नहीं बना सकता .भारत  का वस्त्र वस्त्र अतुलनीय है !" 

                                                         विश्व बाजार में भारत की प्रभुता
राजीव जी के अनुसार अंग्रेजों से पहले तक विश्व बाजार में भारत की स्थिति बहुत मजबूत थी पर अंग्रेजों ने भारत के किसानों , कारीगरों पर अत्याचार कियर और भारतीय अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया ! उनके अनुसार 1813 में ब्रिटेन की संसद में पेश रिपोर्ट के अनुसार ,
     " साड़ी दुनिया के कुल उत्पादन का 43 % उत्पादन भारत में होता है !"
 आगे आज से इसकी तुलना करें तो 2009 में अमेरिका का कुल उत्पादन 25 % है और चीन का 23 % है !
 रिपोर्ट मैं आगे है ,
         " विश्व बाजार के निर्यात में 33 % भारत का है !" यह आंकड़ा अंग्रेजों ने 1840 तक quote किया है !
 साथ ही 1840 तक दुनिया की कुल आमदनी में भारत का हिस्सा 27 % था !इस तरह जब 1840 तक विश्व बाजार में भारत का निर्यात 33 %, उत्पादन 43 %, और आमदनी 27 % थी तब अमेरिका का निर्यात 1 % से भी कम था और ब्रिटेन का तो 0 .5 % से भी कम था ! इसे ऐसे समझिये -> 
           1840 तक विश्व बाजार में भारत की स्थिति की तुलना
                      भारत                                                  अमेरिका + ब्रिटेन सहित यूरोप के 27 देश
निर्यात :          33 %                                                    3 - 4 %
उत्पादन :       43 %                                                   10 -12 %
आमदनी :       27 %                                                   4 - 4 .5 %

                                            भारत की तकनीकी श्रेष्ठता
राजीव दीक्षित जी के अनुसार भारत हजारों सालों से तकनीकी में भी श्रेष्ठ रहा है ! अपनी बात की पुष्ठी के लिए उन्होंने जो मजबूत साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं वह इस प्रकार हैं -
  कैम्पबेल का कहना है ," जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है ऐसा तभी संभव है जब वहां तकनीकी हो ! तकनीकी तभी संभव है जब वहां विज्यान हो..."
  18 वीं सदी तक भारत में स्टील बनाने की बेहतरीन तकनीक रही है ! कैम्पबेल के ही शब्दों में , " भारत के जोड़ का स्टील पूरे विश्व में कहीं नहीं है ! इंग्लैंड या यूरोप का अच्छे से अच्छा लोहा भी भारत के घटिया लोहे से मुकाबला नहीं कर सकता !"
जेम्स फ्रेंकलिन , जिसे बहुत बड़ा धातु विशेषग्य माना जाता है , वह 18 वीं सदी में कहता है ,
  " भारत का स्टील सर्वश्रेष्ठ है ! भारत के कारीगर स्टील बनाने की जो भट्टियाँ बनाते हैं वो विश्व में कोई नहीं बना पता ! इंग्लैंड में तो लोहा बनना अभी शुरू हुआ है जबकि भारत में तो 10वीं सदी से ही हजारों टन लोहा बनता और विश्व में बिकता रहा है !"
    जेम्स के अनुसार 1764 में वह भारतीय स्टील का नमूना लाया और इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषग्य डा. स्कॉट को देकर " लन्दन रोयल सोसाइटी " की ओर से उसकी जांच कराई ! जांच के बाद उनका कहना था की ," यह स्टील इतना अच्छा है की सर्जरी के सारे उपकरण इससे बनाये जा सकते हैं ! मुझे लगता है की इस स्टील को अगर हम पानी में भी डालकर रखेंगे तो भी इसमें जंग नहीं लगेगी !"
                                                     शिपिंग इंडस्ट्री में श्रेष्ठता
अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल ए.वाकर ने भारत की शिपिंग इंडस्ट्री पर रिसर्च की है और उनके अनुसार ,
   " भारत का अद्भुत स्टील जहाज बनाने के काम में बहुत अत है ! दुनिया में जहाज बनाने की सबसे पहली कला और तकनीक भारत में ही विकसित हुई और दुनिया ने पानी का जहाज बनाना भारत से ही सीखा है !
            भारत में समुद्र किनारे बसे हुए गावों में पिछले 2000 सालों से जहाज बनाने का काम हो रहा है !ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने भी जहाज दुनिया में चल रहे हैं  वो भारत की स्टील से ही बने हैं ! यह कहने में मुझे शर्म आती है की हम अंग्रेज अभी तक इतना अच्छा स्टील नहीं बना पाए हैं !"
  भारत का स्टील न सिर्फ अच्छा था बल्कि टिकाऊ भी था !  लेफ्टिनेंट कर्नल ए.वाकर के ही शब्दों में ,
             " अगर हम भारत में 50 साल चला जहाज खरीदते हैं ओर ईस्ट इंडिया कंपनी में चलाते हैं तो वो भी 20 -25 साल आराम से चल जाता है ! हम जितने धन में एक नया जहाज बनाते हैं उतने ही धन में भारतीय 4 नए जहाज बना लेते हैं !
       भारत में तकनीक के स्तर पर ईंट , ईंट जोड़ने का चूना और इसके अलावा भारत में 36 तरह के दूसरे तकनीकी उद्योग हैं और इन सभी में भारत दुनिया में सबसे आगे है इसीलिए हमें भारत से व्यापार करके यह तकनीक लेनी है और यूरोप लाकर पुनरुत्पादित(reproduce) करनी है ! "

                                                                         विज्ञान
राजीव जी ने बताया की बीसियों अंग्रेजों ने भारतीय विज्ञान पर शोध किया है और उनके अनुसार भारत में विज्ञान की 20  से ज्यादा शाखाएं थीं ! इनमें सबसे बड़ी शाखा थी " खगोलविज्ञान " और इसके बाद नक्षत्र विज्ञान , बर्फ विज्ञान , आदि थे !
     अंग्रेज इतिहासकार वाकर के अनुसार " भारत में विज्ञान की जो ऊँचाई है उसका अंदाजा हम अंग्रेजों को नहीं लगता !"
        आज सारी दुनिया कोपरनिकस को दुनिया का पहला वेज्ञानिक मानती है जिसने प्रथ्वी और सूर्य के बीच सम्बन्ध बताया , दोनों के बीच की दूरी और उपग्रह बताये पर अंग्रेज इतिहासकार वाकर ही इसे झूठ करार देता है ! उसके अनुसार ,
   " यूरोपियन लोगों से हजारों साल पहले भारत के वेज्ञानिकों ने प्रथ्वी से सूर्य की दूरी का ठीक-ठीक पता लगाया व भारतीय शास्त्रों में उसे दर्ज किया !"
    राजीव जी के अनुसार हमारे वेदों में और खासकर यजुर्वेद में , ऐसे कई श्लोक हैं जिनमें खगोलशास्त्र का बहुत सारा स्पष्ट ज्ञान मिलता है !
  कोपरनिकस से हजार साल पहले ही भारतीय वेज्ञानिक आर्यभट्ट ने प्रथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी बिलकुल ठीक-ठीक माप दी थी जो की आज भी मानी जाती है ! इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं की जिस देश के वेज्ञानिकों ने  यूरोप से हजार साल पहले ही प्रथ्वी-सूर्य की दूरी माप ली हो तो उस देश में विज्ञान कितना विकसित रहा होगा !
        राजीव जी एक ओर रोचक जानकारी देते हैं की हमारे वेज्ञानिकों ने ही बताया की सर्दी, गर्मी, बरसात में रात-दिन कितने बड़े होंगे ! प्रथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और सूर्य की परिक्रमा करती है यह बात सर्वप्रथम 10 वीं सदी में भारतीयों ने ही प्रमाणित की थी ! यह भी भारतीयों ने ही बताया था की प्रथ्वी के घूमने से दिन-रात होते हैं , मोसम और जलवायु बदलते हैं !जब दुनिया के कई देश पढना-लिखना भी नहीं जानते थे तब तीसरी सदी के आस-पास भारतीय वेज्ञानिकों ने यह बता दिया था की सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य से क्या सम्बन्ध है !
   श्री आर्यभट्ट ने ही दिनों का नामकरण रविवार,सोमवार, मंगलवार,बुधवार,आदि किया और अंग्रेज खगोलविज्ञानी और नक्षत्र विज्ञानियों ने इसे भारत से लेकर sunday,monday,tuesday,wednesday आदि कर दिया और वो इस बात को स्वीकार भी करते हैं !
  एक अंग्रेज डेनियल डिफो आश्चर्य से कहता है की ,
     " मैंने जब भी भारत का पंचांग पढ़ा है मुझे एक सवाल का उत्तर कभी नहीं मिला की भारत के वेज्ञानिक कई-कई साल पहले कैसे पता लगा लेते हैं की आज चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण पड़ेगा और इस समय पड़ेगा और सही उस समय  ही पड़ता भी है ! "