27.2.11

   राजीव जी और बाबा रामदेव जी के सभी प्रशंसकों के लिए आज का दिन बहुत महान और शुभ है ! आज रामदेव जी के आह्वाहन पर हजारों ,लाखों लोग delhi में इतनी बड़ी सभा कर रहे हैं की यह भ्रष्ट सरकार सच में हिल जाएगी ! हम सब वहां जाकर अपना योगदान देंगे और जो नहीं जा सकेंगे उनकी शुभ कामनाएं हमें ऊर्जा देंगीं !
     - " भ्रष्टाचार के खिलाफ यह आन्दोलन अत्यधिक सफल रहे ! शुभकामनाएं !"

18.2.11

वीर मदन लाल धींगरा

               वीर मदन लाल धींगरा भारत के वह महान युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने लन्दन में दुष्ट अंग्रेज अधिकारी कर्जन वायली की हत्या कर दुष्ट अंग्रेज सरकार को उसी के देश में ललकारा था ! इंग्लॅण्ड में फांसी पाने वाले वह प्रथम भारतीय क्रांतिकारी थे !
               1906 में वह उच्च शिक्षा के लिए लन्दन गए जहाँ उनकी भेंट वीर सावरकर से हुई और उनके साथ उन्होंने भी 1857 की क्रांति की वर्षगांठ मनाई ! इस उत्सव के प्रतीक स्वरुप जब मदनलाल एक बैच पहनकर कॉलेज गए तो एक अंग्रेज लड़के ने उसे छीनने का प्रयास किया ! इस पर मदन जी उसके पीछे चाकू लेकर भागे ! इसी तरह जब एक बार लन्दन स्थित "इण्डिया हाउस" नामक हॉस्टल में क्रांतिकारी युवक बम बनाने की ट्रेनिंग ले रहे थे तभी मदन जी ने रसायन के एक अत्यधिक गर्म बर्तन को अपने नंगे हाथों से पकड़ लिया जिससे एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बच गयी !

जीवन परिचय ->
   श्री मदन जी का जन्म पंजाब में अमृतसर के एक संपन्न "खत्री" परिवार में 18-फ़रवरी-1883 को हुआ था ! उनके पिता दित्ता मल एक धनी सिविल सर्जन थे ! यह बहुत अचरज की बात है की जहाँ उनका परिवार अंग्रेजों का इतना बड़ा समर्थक था वहीँ मदन जी अंग्रेजों के कट्टर दुश्मन थे ! लाहोर में छात्र जीवन के दोरान ही उनपर लाला लाजपत राय जी के " पगड़ी संभाल जट्टा आन्दोलन " और भगत सिंह के चाचाजी श्री अजीत सिंह का बहुत प्रभाव पड़ा ! अत्याचारी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध होने के कारण ही उन्हें कॉलेज से भी निकल दिया गया और उनपर अवैध राजनीतिक गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया ! इस स्थिति में उनके परिवार ने भी उनका साथ नहीं दिया और उन्हें घर से निकल दिया  ! मदन जी ने बहुत संघर्ष किया क्लर्क की नौकरी की , तांगा चलाया और यहाँ तक की फैक्ट्री में मजदूरी तक की परन्तु देशप्रेम नहीं छोड़ा ! फैक्ट्री में उन्होंने एक यूनियन बनाने का प्रयास किया पर यहाँ से भी उन्हें निकल दिया गया ! उन्होंने कुछ समय मुंबई में भी काम किया और फिर अपने बड़े भाई की सलाह मानकर 1906 में लन्दन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से मेकनिकल इंजीनियरिंग करने के लिए लन्दन रवाना हुए ! उनके बड़े भाई और इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादियों ने उनका सहयोग किया !
  
वीर सावरकर से भेंट ->
    जल्दी ही मदन जी की भेंट जानेमाने क्रांतिकारी और राजनीतिक विचारक श्री विनायक दामोदर सावरकर और श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा से हुई , जो की मदन जी की  पक्की लगन और  गहरे देशप्रेम से बहुत प्रभावित हुए ! यहीं से मदन जी का एकमात्र लक्ष्य स्वतंत्रता के लिए संग्राम करना बन गया ! सावरकर जी ने उन्हें गुप्त क्रांतिकारी संगठन "अभिनव भारत मंडल " का सदस्य बना लिया और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी ! वह "इण्डिया हाउस " नामक हॉस्टल के भी सदस्य बन गए जिसकी स्थापना श्याम जी कृष्ण वर्मा ने भारतीयों के लिए की थी लेकिन वास्तव में यह भारतीय छात्रों की राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख अड्डा था !
        जब 11-अगस्त-1908 को भारत में श्री खुदीराम बोस और उसके बाद श्री  कन्हाई दत्त , आदि क्रांतिवीरों को फांसी की सजा दी गयी तब मदन जी अत्यधिक उत्तेजित हो उठे ! उन्होंने वीर सावरकर से पूंछा की क्या अपनी मात्रभूमि के लिए प्राण देने का यह सही वक्त है ? इस पर उन्हें यह प्रसिद्ध उत्तर मिला " अगर तुम सर्वोच्च बलिदान के लिए तैयार हो और तुम्हारे मन ने अंतिम मुक्ति के बारे में सोच लिया है तो निश्चित रूप से अपने राष्ट्र के लिए प्राण देने का यह सही समय है !"
     कर्जन वायली तत्कालीन भारत सचिव  का सहायक सैनिक अधिकारी (aide-de-camp) था ! उसकी  हत्या से पूर्व उन्होंने रिवोल्वर का लाइसेंस लिया और एक रायफल शूटिंग रेंज में दाखिला लिया ! शूटिंग रेंज के मालिक ( HENRY STANTON MORLEY) की कोर्ट में दी गयी गवाही के अनुसार द्वारा वह निशानेबाजी में इतने पारंगत हो चुके थे की 18 फुट की दूरी से लक्ष्य पर 12 निशाने लगा लेते थे ! 
कर्जन वायली की हत्या ->
   1 -जुलाई-1909 को इंडियन नेशनल असोशिएशन (Indian National Association) के वार्षिकोत्सव में शामिल होने के लिए कई भारतीय और अंग्रेज इकट्ठे हुए ! जैसे ही अंग्रेज अधिकारी कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ आया वैसे ही मदन जी ने उसपर गोलियां चला दीं और पांच में से चार गोलियां सीधे उसके चेहरे पर लगीं ! इसी बीच जब पारसी डॉक्टर कावसजी लाल्काका ने वायली को बचाने की कोशिश की तो मदन जी ने उस पर भी दो गोलियां चला दीं ! परन्तु मदन जी ने जब स्वयं पर गोली चलाने का प्रयास किया तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया !

मुकदमा ->
      मदन जी पर 23-जुलाई-1909 को ओल्ड बेली कोर्ट (Old Bailey Court) में मुकदमा चलाया गया ! कोर्ट में मदन जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा की "उन्हें कर्जन की हत्या का कोई अफ़सोस नहीं है क्योंकि उन्होंने ऐसा करके भारत को अमानवीय ब्रिटिश राज की गुलामी से मुक्त कराने में अपना योगदान दिया है ! जबकि कावसजी की हत्या करने का उनका कोई इरादा नहीं था !"
       उम्मीद के अनुसार उन्हें म्रत्यु दंड की सजा हुई !
 जब जज ने अपना फेसला सुनाया और मदन जी से पूछा की वह क्या कुछ कहना चाहते हैं तो मदनजी ने वीरतापूर्वक कहा " मैं अपने बचाव में कुछ नहीं कहना चाहता सिवाय इसके की मैंने जो किया ठीक किया  ! मेरा मानना है की किसी ब्रिटिश कोर्ट को मुझे पकड़ने , कैद करने या फांसी देने का अधिकार नहीं है इसीलिए ही मैंने अपने लिए बचाव का वकील नहीं लिया है ! "
     " मेरा मानना है की अगर जर्मन अंग्रेजों पर कब्ज़ा करलें तो अंग्रेजों का जर्मनों के खिलाफ युद्ध करना राष्ट्रभक्ति है तो अपने केस में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना और भी ज्यादा न्यायोचित और देशभक्तिपूर्ण है ! पिछले 50 सालों में अंग्रेजों ने 80 मिलियन  भारतीयों की हत्या की है और हर साल भारत से 100 ,000 ,000 पौंड धन लूटा है ! मैं अंग्रेजों को अपने देशभक्त देशवासियों को फांसी देने और निर्वासित करने के लिए भी जिम्मेदार मानता हूँ , जिन्होंने वही किया था जो यहाँ अंग्रेज अपने देश के लोगों को करने की सलाह देते हैं ! जिस तरह जर्मनों को इस देश (इंग्लॅण्ड ) पर कब्ज़ा करने का कोई अधिकार नहीं है उसी तरह अंग्रेजों को भी हमारे भारत पर कब्ज़ा करने का कोई हक़ नहीं है ! इस तरह हमारी ओर से यह पूरी तरह न्यायोचित है की हम उन अंग्रेजों को मारें जो हमारी पवित्र भूमि को अपवित्र कर रहे हैं ! मैं अंग्रेजों के इस भयानक पाखण्ड , तमाशे और मज़ाक पर आश्चर्यचकित हूँ ! यह स्वयं मानवता के दमन में चैम्पियन हैं ! ..."
     मदनजी को जज ने दोषी करार देते हुए पूछा  की क्या उन्हें कुछ कहना है की  उन्हें म्रत्युदंड क्यों न दिया जाये ? इस पर उन्होंने जवाब दिया ,
       " मैं आपको बार-बार कह चुका हूँ की मैं इस कोर्ट को मान्यता नहीं देता ! आप जो चाहें कर सकते हैं मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ! आज तुम गोरे लोग सर्व-शक्तिशाली हो लेकिन याद रखो कभी हमारा भी वक्त आयेगा ,तब हम जो चाहेंगे वो करेंगे ! "
    जब जज ने उन्हें म्रत्युदंड दिया तो उन्होंने वीरता से कहा ," धन्यवाद , माय लोर्ड !मुझे गर्व है की मुझे अपने देश के लिए अपने प्राण देने का सौभाग्य  मिला है !"

म्रत्युदंड ->
    17-अगस्त-1909 को उन्हें फांसी हो गयी !  फांसी के तख्ते पर इस वीर सिंह ने गर्जना की ,
         " मेरा विश्वास है की विदेशी संगीनों से पराधीन किया गया राष्ट्र सदेव युद्ध की स्थिति में ही रहता है ! चूंकि निःशस्त्र जाति द्वारा खुला युद्ध करना असंभव है इसीलिए मैंने अकस्मात हमला किया ! मैंने पिस्तोल निकली और गोली चला दी ! मुझ जैसा निर्धन बेटा अपने खून के अलावा अपनी माँ को और क्या दे सकता है ? इसीलिए मैंने उसकी बलिवेदी पर अपना बलिदान कर दिया है ! आज भारतीयों को जो एकमात्र सबक सीखना है वह यह की किस तरह मरें और यह सिखाने का एक ही तरीका है - खुद  मरकर दिखाना ! मेरी भगवन से एक ही प्रार्थना है की मैं दोबारा उसी माँ की गोद में पैदा होऊं और , जब तक हमारा लक्ष्य पूरा न हो , उसी पावन लक्ष्य के लिए दोबारा मरूं ! वन्दे मातरम !"


प्रतिक्रिया ->
      अधिसंख्य ब्रिटिश अख़बारों और कुछ उदारवादी भारतीयों ने अपेक्षा के अनुरूप मदन जी के इस साहसी कार्य की आलोचना की ! द इंडियन सोशीयोलोजिस्ट (The Indian Sociologist ) ने जब अपने अगस्त अंक में छपे एक लेख में मदन जी के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित की तो उसके प्रिंटर गाय अल्द्रेड (Guy Aldred)  को बारह माह (12) के सश्रम कारावास की सजा हो गयी ! मदन जी के इस वीरतापूर्ण कार्य ने आयरिश लोगों को भी प्रेरित किया जो की उस समय स्वयं अपनी लढाई  लढ़ रहे थे !
      कुछ आधुनिक इतिहासकारों का मानना है की मदन जी का मुकदमा पूरी तरह से  अन्यायपूर्ण और पक्षपातपूर्ण था क्योंकि न तो उन्हें बचाव के लिए वकील दिया गया ( यद्यपि यह उनकी ही इच्छा  थी क्योंकि उनका मानना था की किसी ब्रिटिश कोर्ट को उनपर मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है ! ) और पूरा केस एक ही दिन में ख़त्म कर दिया गया ! कुछ कानून विशेषज्ञों के अनुसार फांसी के समय और स्थान का निर्धारण करना कोर्ट का काम नहीं है परन्तु कोर्ट ने ऐसा किया ! 

गांधीजी की नकारात्मक प्रतिक्रिया ->
    दुर्भाग्य से गांधीजी ने भी मदन जी के इस साहसी कार्य की आलोचना की ,
   " कर्जन वायली की हत्या के समर्थन में यह कहा जाता है की अगर जर्मनी इंग्लैंड पर हमला करता तो अंग्रेज हर जर्मन की हत्या करते इसी तरह यह भी हर भारतीय का अधिकार है की वो किसी भी अंग्रेज को मारे ...यह तुलना भ्रमजनक है ! अगर जर्मनी इंग्लैंड पर हमला करता तो अंग्रेज हर जर्मन की हत्या नहीं करते वह सिर्फ उन्ही जर्मनों को मारते जो हमलावर हैं न की उन्हें जो की असंदिग्ध हैं या अतिथि हैं ! "

यादगार ->
   मदनजी के पार्थिव शरीर को अंग्रेजों ने दफ़न करा दिया और हिन्दू रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका था क्योंकि उनका परिवार पहले ही उनका परित्याग कर चुका था और वीर सावरकर को मांगने पर भी उनका शव  नहीं दिया गया ! जब अधिकारी शहीद उधम सिंह  का शव  ढूंढ रहे थे तभी उन्हें संयोग से मदन जी का शव मिल गया और 13-दिसंबर-1976 को उसे भारत को सौंप दिया गया !    भगत सिंह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे महान क्रांतिकारियों के लिए वह प्रेरणा के प्रमुख स्त्रोत थे और आज पूरे भारत में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है पर अफ़सोस की बात है की भारत सरकार ने उनकी शहादत को संजोने के लिए कुछ नहीं किया है !

 स्रोत ->
(1) कोर्ट में जज के साथ हुई मदन लाल जी की बातचीत का स्रोत -> The Proceedings of the Old Bailey, 1674-1913  -A fully searchable edition of the largest body of texts detailing the lives of non-elite people ever published, containing 197,745 criminal trials held at London's central criminal court. link->
  http://www.oldbaileyonline.org/browse.jsp?id=t19090719-55&div=t19090719-55&terms=Dhingra#highlight

(2) http://www.hindujagruti.org/news/6729.html

(3)  http://en.wikipedia.org/wiki/Madan_Lal_Dhingra
(4) http://www.thaindian.com/newsportal/politics/madan-lal-dhingra-a-forgotten-martyr-comment_100231783.html


 

13.2.11

स्वतंत्रता सेनानी : लोकनाथ बल

श्री लोकनाथ बल भी हमारे उन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं ! वह मास्टर सूर्यसेन के सशस्त्र प्रतिरोधी बल के सदस्य थे और उसके बाद वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस से जुड़ गए ! स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह कलकत्ता कोर्पोरेशन में प्रशासनिक अधिकारी बन गए और म्रत्युपर्यंत उस पद पर रहे !
   
प्रारंभिक जीवन और स्वाधीनता आन्दोलन ->
  श्री लोकनाथ बल का जन्म बंगाल ( आज का बंगलादेश ) के चटगॉंव जिले के धोल्रा गॉंव में 8-मार्च-1908 को हुआ था ! उनके पिता श्री प्राणकृष्ण बल थे ! अंग्रेजों के अत्याचारों से भारतीय युवा मन बेचेन हो उठा था ! इस समय में मास्टर सूर्य सेन ने क्रांति का बीड़ा उठा रखा था ! वह जानते थे की धन व हथियारों की कमी के कारण वह अंग्रेजों से सीधे नहीं लड़ सकते इसीलिए उन्होंने साम्राज्यवादी सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया ! श्री लोकनाथ बल भी उनके साथ जुड़ गए !
   18-अप्रैल-1930 को जब मास्टर सूर्य सेन ने प्रसिद्ध चटगॉंव शस्त्रागार पर हमला किया तब  श्री लोकनाथ बल भी उनके दल के प्रमुख सदस्य थे ! 22-अप्रैल-1930 को उनकी दोबारा ब्रिटिश सेना और ब्रिटिश पुलिस से  मुठभेड़ हुई ! इस गोलीबारी में श्री लोकनाथ जी के छोटे भाई श्री हरिगोपाल बल (तेग्र ) के साथ-साथ 11 क्रांतिकारी शहीद हो गए ! श्री लोकनाथ जी किसी तरह बचकर निकले और फ़्रांसिसी क्षेत्र  चंद्रनगर पहुँच गए ! लेकिन दुर्भाग्य से 1-सितम्बर-1930 को अंग्रेज पुलिस से हुई मुठभेड़ में उनके साथी श्री जीवन घोषाल शहीद हो गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया ! उन पर केस चला और 1-मार्च-1932 को उन्हें आजीवन  देश निकले (कालापानी) की सजा दी गयी और उन्हें अंदमान-निकोबार की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया ! 1946 में वहां से रिहा होने के बाद वह पहले श्री एम्.एन.राय की रेडिकल डेमोक्रटिक पार्टी से जुड़े और बाद में वह भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हो गए !

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ->
     श्री लोकनाथ बल 1-मई-1952 से लेकर 19-जुलाई-1962 तक कलकत्ता कोर्पोरेशन के द्वितीय डिप्टी कमिश्नर के पद पर रहे और 20-जुलाई-1962 को इसके प्रथम डिप्टी कमिश्नर  बन गए ! इसी पद पर रहते हुए 4-सितम्बर-1964 को कलकत्ता में उनका देहावसान हो गया ! 

6.2.11

युवा क्रांतिकारी : बसंत कुमार बिस्वास

        युवा क्रांतिकारी व देशप्रेमी श्री बसंत कुमार बिस्वास बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी संगठन " युगांतर " के सदस्य थे ! उन्होंने अपनी जान पर खेल कर वायसराय लोर्ड होर्डिंग पर बम फेंका था और इस के फलस्वरूप उन्होंने 20 वर्ष की अल्पायु में ही देश पर अपनी जान न्योछावर कर दी !

5.2.11

महान स्वतंत्रता सेनानी : श्री पुल्लिन बिहारी दास


      श्री पुल्लिन बिहारी दास महान स्वतंत्रता प्रेमी व क्रांतिकारी थे ! उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए " ढाका अनुशीलन समिति " नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की व अनेक क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया !

प्रारंभिक जीवन ->
      श्री पुल्लिन जी का जन्म 24 -जनवरी-1877 को बंगाल के फरीदपुर जिले में लोनसिंह नामक गाँव में एक मध्यम-वर्गीय

3.2.11

स्वतंत्रता सेनानी श्री बारीन्द्रनाथ घोष

      श्री बरिन्द्र्नाथ घोष महान स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे तथा "युगांतर" के संस्थापकों में से एक थे  ! वह बारिन घोष नाम से भी लोकप्रिय हैं ! बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा को फेलाने का श्री श्री बारीन्द्र और भूपेन्द्र नाथ दत्त ( विवेकानंद जी के छोटे भाई ) को ही जाता है ! महान अध्यात्मवादी श्री अरविन्द उनके बड़े भाई थे ! 

प्रारंभिक जीवन ->
     श्री बरिन्द्र्नाथ घोष का जन्म 5 -जनवरी-1880 को लन्दन के पास क्रोयदन(croydon) नमक कसबे में हुआ था ! उनके पिता श्री कृष्नाधन घोष एक नामी चिकित्सक व  प्रतिष्ठित जिला सर्जन थे जबकि उनकी माता देवी स्वर्णलता प्रसिद्ध समाज सुधारक व विद्वान राजनारायण बासु की पुत्री थीं ! श्री