18.1.11

" शिकागो विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद जी का ऐतिहासिक उदबोधन "

 शिकागो , 11 - सितम्बर-1893


 " अमेरिका के बहनों और भाइयों ,
          आपने जो  हमारा गर्मजोशीपूर्ण और हार्दिक स्वागत  किया  है उससे मेरा  हृदय प्रसन्नता से भर गया है ! मैं   संसार के सर्वाधिक प्राचीन सन्यासी समाज की ओर से आपको धन्यवाद देता हूँ , मैं   धर्मों की जननी (भारत माता) की ओर से आपको धन्यवाद देता हूँ  और मैं सभी जातियों और सम्प्रदायों के असंख्य हिन्दुओं की ओर से आपको धन्यवाद देता हूँ !


          मुझे गर्व है की मैं उस धर्म का हूँ जिसने विश्व को सहनशीलता और सार्वभौमिक सहिष्णुता की शिक्षा दी ! हम न सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं बल्कि सभी धर्मों को सत्य मानते हैं ! मुझे गर्व है की मैं ऐसे देश का वासी हूँ जिसने संसार के सभी धर्मों व  सभी राष्ट्रों के पीड़ितों  और शरणार्थियों को आश्रय दिया है ! आपको यह बताते हुए मैं गोरवान्वित महसूस कर रहा हूँ की हमने अपने  हृदय में इजराइलियों  के बचे हुए उस शुद्धतम टुकड़े (जत्थे) को शरण दी जिन्होंने, उस वक्त आकर दक्षिण भारत में हमारे साथ शरण ली जब रोमनों के  निरंकुश शासन ने उनके पवित्र मंदिर को नष्ट कर दिया था !
मुझे गर्व है की मैं उस धर्म का हूँ जिसने महान पारसी समुदाय के शरणार्थियों  को शरण दी और आज भी उनका पालन-पोषण कर रहा है ! भाइयों , मैं आपको उस भजन की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहता हूँ जिसे मैं बचपन से दोहराता आया हूँ और जिसे प्रतिदिन असंख्य व्यक्ति दोहराते हैं , 
  " जिस प्रकार विभिन्न स्त्रोतों से बहने वाली नदियाँ अपना जल सागर में मिला देती हैं उसी प्रकार ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य अपनी विभिन्न परवर्तियों के कारण  जो विभिन्न मार्ग अपनाते हैं , चाहें वह टेढ़ा-मेढा हो या सीधा ,वह सब भी ईश्वर की ओर ही जाते हैं !"

        आज का यह  सम्मेलन भी , जो की अभी तक हुए सभी सम्मेलनों में सर्वाधिक गरिमापूर्ण व महत्वपूर्ण है , अपने आप में गीता द्वारा उपदेशित इस प्रशंसनीय सिद्धांत की ही  पुष्टि है , एक उदघोश है  की , "जो भी मेरी ओर आता है , चाहें वह किसी भी मार्ग से आये , मैं (ईश्वर) उसे मिल जाता हूँ : सभी मनुष्य मुझे पाने वाले मार्ग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं !"

       सम्प्रदायवाद, धर्मांधता और उसकी क्रूर संतति , इन धर्मान्धों  ने इस सुंदर भूमि पर लम्बे समय तक अधिकार किया है ! उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है , बार-बार इसे इंसानों के खून से डुबो दिया है , सभ्यता को नष्ट कर दिया है और पूरे राष्ट्र को निराशा की ओर धकेल दिया है ! यदि यह भयानक शैतान नहीं होते तो मानव समाज आज जितना  विकसित है उससे कहीं ज्यादा विकसित होता !पर उनका समय आ गया है , और मैं उत्साह से आशा करता हूँ की वह घंटी, जो आज सुबह इस सम्मलेन के सम्मान में बजी ,वह धर्मांधता , अत्याचार ( चाहें वह तलवार द्वारा हो या कलम द्वारा ) , और एक ही लक्ष्य को पाने के लिए तत्पर मनुष्यों के बीच व्याप्त सभी निर्दय भावनाओं के लिए मृत्यु-नाद साबित होगी  !"

इंग्लिश में-http://www.knowledgebase-script.com/demo/article-169.html