जो व्यक्ति क्रांतिकारियों को सिर्फ हिंसा से ही जोड़ते हैं उनके लिए सुखदेव जी का यह अंतिम पत्र ही उनका जवाब है जो उन्होंने लाहोर केस में फांसी कि सजा होने पर 7-अक्टूबर-1930 को एच.एस.आर.ए. के अपने साथियों को लिखा था ,
" लाला जी (लाला लाजपत राय) पर किये गए लाठियों के प्रहार ने पूरे देश में अशांति पैदा कर दी थी ! हमारे लिए यह जनता को अपनी विचारधारा से अवगत करने का अच्छा अवसर था
अत हमने सौन्डर्स कि हत्या की योजना बनायीं ! हम लोगों को यह बताना चाहते थे की यह एक राजनीतिक हत्या है जिसे करने वाले क्रांतिकारी हैं ! हमने हमेशा जनता कि तकलीफों के विरोध में ही प्रतिक्रिया कि है ! हम जनता में क्रांतिकारी आदर्शों को बढ़ावा देना चाहते थे और इस तरह के आदर्शों की अभिव्यक्ति उस व्यक्ति के मुख से और भी अधिक गौरवान्वित प्रतीत होती है जो स्वयं इन आदर्शों के लिए ही म्रत्यु के द्वार पर खड़ा हो ! "
सुखदेव जी द्वारा गाँधी जी को लिखा गया पत्र भी उनके आदर्शों का अच्छा प्रतिबिम्ब है जिसमें उन्होंने एक सच्चे भारतीय क्रांतिकारी कि विचारधारा को पूर्णत: रेखांकित किया है ,
" देश में समाजवादी गणतंत्र की स्थापना करना ही क्रांतिकारियों का उद्देश्य है ! इस लक्ष्य के लिए एक मामूली संशोधन की भी कोई संभावना नहीं है ! मुझे लगता है की आप समझते हैं की क्रांतिकारी तर्कहीन लोग हैं, जो विनाशकारी कार्यों में आनंद लेते हैं किन्तु सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है ! वे अपनी जिम्मेदारियों को जानते हैं और अपने क्रांतिकारी संविधान में रचनात्मक कार्यों को सर्वोच्च स्थान पर रखते हैं यद्यपि मौजूदा हालात में उन्हें उसके विनाशकारी पक्ष को ही अपनाना पड़ रहा है ! " अत: हम देखते हैं कि हिंसा उनके लिए साध्य नहीं साधन थी ! उन्होंने केवल क्रांति के लिए हिंसा नहीं की बल्कि अपने स्वतंत्रता को पाने के लिए उसे अंतिम अस्त्र के रूप में प्रयोग किया !
" देश में समाजवादी गणतंत्र की स्थापना करना ही क्रांतिकारियों का उद्देश्य है ! इस लक्ष्य के लिए एक मामूली संशोधन की भी कोई संभावना नहीं है ! मुझे लगता है की आप समझते हैं की क्रांतिकारी तर्कहीन लोग हैं, जो विनाशकारी कार्यों में आनंद लेते हैं किन्तु सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है ! वे अपनी जिम्मेदारियों को जानते हैं और अपने क्रांतिकारी संविधान में रचनात्मक कार्यों को सर्वोच्च स्थान पर रखते हैं यद्यपि मौजूदा हालात में उन्हें उसके विनाशकारी पक्ष को ही अपनाना पड़ रहा है ! " अत: हम देखते हैं कि हिंसा उनके लिए साध्य नहीं साधन थी ! उन्होंने केवल क्रांति के लिए हिंसा नहीं की बल्कि अपने स्वतंत्रता को पाने के लिए उसे अंतिम अस्त्र के रूप में प्रयोग किया !
आज प्रत्येक व्यक्ति चाहे किसी अन्य क्रांतिकारी को न जाने किन्तु सुखदेव-भगत सिंह-राजगुरु की त्रिमूर्ति को अवश्य ही जानता है ! इसका कारण है उनकी व्यवहारिक सोच ! उन्होंने साबित कर दिया था की क्रांतिकारी कोई सनकी या मूर्ख युवक नहीं होते जो सिर्फ मरने-मारने के लिए ही हिंसा करते हैं बल्कि वो तो बहुत सोच-विचारकर अपने मूल्यवान प्राणों को अपनी मातृभूमि के चरणों में अर्पण कर देते हैं !
दुर्भाग्य से आज भी हमें उनके विषय में बहुत कम जानकारी है ! श्री सुखदेव जी का जन्म 15 -मई -1907 को लुधिआना (पंजाब) में हुआ था ! इनकी माँ श्रीमती रल्ली देवी और पिता श्री राम लाल थापर जी थे ! सुखदेव जी में बचपन से ही राष्ट्र प्रेम की भावना थी जो युवा होने पर और भी सशक्त हो चुकी थी ! इन्होने अपने परम मित्र भगत सिंह जी , भगवती चन्द्र वोहरा जी और कोमरेड राम चन्द्र जी के साथ लाहोर में " नौजवान सभा " का गठन किया ! इस संगठन के प्रमुख उद्देश्य थे - युवाओं के हृदय में राष्ट्र प्रेम की ज्योति जगाना , उनमें तार्किक व वैज्ञानिक प्रवृति पैदा करना , साम्प्रदायिकता व अश्प्रश्यता (untouchability ) का अंत करना !
वह कितने कुशल संगठनकर्ता थे इस विषय में उनके साथी और लाहोर षडयंत्र केस में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कोमरेड श्री शिव वर्मा जी का कहना है , " वास्तव में भगत सिंह पंजाब पार्टी के राजनीतिक परामर्शदाता थे जबकि सुखदेव उसके संगठक थे - वह व्यक्ति जिसने उसकी नींव का एक-एक पत्थर रखा ! "
उनका महत्व और अंग्रेज सरकार में उनका भय इसी बात से पता चलता है की लाहोर षड्यंत्र केस में प्रत्यक्ष रूप से शामिल ना होने पर भी उन्हें प्रमुख अभियुक्त बनाया गया था ! इस केस का शीर्षक ही था " In the court of The Lahore Conspiracy Case Tribunal, Lahore, constituted under Ordinance no III of 1930: The Crown – Complainant versus Sukhdev and others " ! तत्कालीन एस.एस.पी. हेमिल्टन हार्डिंग ने इस केस की एफ.आई.आर. में पच्चीस दोषियों में से सुखदेव जी को प्रथम दोषी बनाया था जबकि भगत सिंह जी का बारहवां और राजगुरु जी का बीसवां स्थान था !
राष्ट्रिय अभिलेखागार में सात दशकों तक धूल खाने के बाद लाहोर षड्यंत्र केस का एतिहासिक निर्णय 2005 में प्रकाशित किया गया ! इससे सुखदेव जी के अतुलनीय योगदान पर और भी प्रकाश पड़ा ! इसके अनुसार " सुखदेव को इस षडयंत्र का मस्तिष्क कहा जा सकता है जबकि भगत सिंह उसके दांयें हाथ हैं ! " इससे बड़ा गौरव एक देश भक्त के लिए और क्या होगा !
सुखदेव जी एच.एस.आर.ए. के प्रमुख निर्णयकर्ताओं में थे ! शिव वर्मा जी के अनुसार " अप्रैल 1929 में एच.एस.आर.ए. की केन्द्रीय कमेटी ने केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंकने की योजना में भगत सिंह को न भेजने का फेसला लिया था ! उस बैठक में सुखदेव जी उपस्थित नहीं थे ! जब तीन दिन बाद वह वापस आये तो उन्होंने इस निर्णय का अत्यधिक विरोध किया ! उनका मानना था की एच.एस.आर.ए. की सोच और उद्देश्य को भगत सिंह से बेह्तर कोई नहीं समझा सकता ! यहाँ तक की उन्होंने भगत सिंह जी को भी इस निर्णय को मान लेने के लिए धिक्कारा और कटु शब्द कहे ! तब भगत सिंह जी ने उन्हें चले जाने को कहा ! "
" अंतत: कमेटी ने अपना निर्णय बदलकर भगत सिंह जी को बम फेंकने के लिए चुन लिया ! सुखदेव बिना कुछ कहे उसी शाम लाहोर चले गए ! दुर्गा भाभी जी के अनुसार जब अगले दिन वह लाहोर पहुंचे तब उनकी आंखें सूजी हुयी थीं क्योंकि वह अपने निर्णय पर पूरी रात रोते रहे थे किन्तु देशप्रेम के मार्ग में वह अपने परम मित्र को भी बलिदान करने से पीछे नहीं हटे ! ऐसे थे सुखदेव - फूल से भी ज्यादा कोमल और पत्थर से भी ज्यादा कठोर ! लोग हमेशा उनकी कठोरता देखते थे लेकिन सुखदेव ने कभी शिकायत नहीं की ! वह हमेशा अपनी भावनाओं को छुपाये रखते थे ! "
इस तरह हम देखते हैं कि भयंकर देशभक्ति और व्यावहारिक कार्यवाही उनके चमत्कारी व्यक्तित्व के प्रमुख गुण थे ! भारत माता के ऐसे अदभुत सपूत को शत-शत नमन !
उनमें जितनी गहरी विचारशक्ति थी उतना ही ज्यादा उत्साह भी था ! एच.एस.आर.ए. के एक अन्य कोमरेड के शब्दों में " अपनी सहनशक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक बार उन्होंने अपने बांयें हाथ पर बने ॐ के निशान को हटाने के लिए पहले उस पर नायत्रिक एसिड (nitric acid) डाला aur उसके बाद अपने रिसते घाव को मोमबत्ती पर जला लिया ! "